जहाँ तर्क और कल्पना मिले — वहाँ था अफलातून
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जब हम ज्ञान, तर्क और विचारों की बात करते हैं, तो इतिहास में कुछ नाम अमर हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है – अफलातून। आज हम उसके बारे में जानेंगे, न केवल एक विद्वान के रूप में, बल्कि एक सोच के रूप में, एक चेतना के रूप में।
अफलातून प्राचीन यूनान का महान दार्शनिक था। वह सुकरात का शिष्य और अरस्तु का गुरु था। लेकिन केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है। उसका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उसने मनुष्य के सोचने के तरीके को ही बदल दिया।
उसने जीवन, समाज, राजनीति, न्याय और आत्मा जैसे विषयों पर गहराई से विचार किया। उसका मानना था कि इस दुनिया की हर चीज़ एक "आदर्श रूप" या "आदर्श विचार" के आधार पर बनी है। उसका यह सिद्धांत आज भी दर्शनशास्त्र के सबसे जटिल और गूढ़ विषयों में से एक माना जाता है।
अफलातून का मानना था कि सच्चा ज्ञान केवल अनुभव से नहीं, बल्कि चिंतन और मनन से प्राप्त होता है। उसने एक कल्पना की – एक आदर्श राज्य की, जहाँ राजा एक दार्शनिक हो। उसके अनुसार, जब तक दार्शनिक राजा नहीं बनेंगे या राजा दार्शनिक नहीं होंगे, तब तक समाज में न्याय नहीं आ सकता।
वह केवल किताबों में सीमित नहीं था, उसका विचार आज भी राजनीति, शिक्षा और नैतिकता के क्षेत्र में प्रासंगिक है। एक ऐसा व्यक्ति जिसने हजारों वर्ष पहले जो सोचा, वह आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है – यह ही उसे महान बनाता है।
अफलातून केवल एक नाम नहीं, वह एक विचारधारा है – सोचने की, प्रश्न पूछने की, सत्य को खोजने की।
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